प्राचीन सभ्यतायें |
दक्षिण-पूर्व राजस्थान में आहड़ और गिलूद नामक स्थानों की खुदाई से एक संस्कृति प्रकाश में आई जिसका नाम आहड संस्कृति पड़ा इस संस्कृति की बस्तियाँ बनास घाटी के सूखे क्षेत्र में फैली हुई थीं आहड़ और गिलुंद दोनों ही स्थानों पर ताँबे के औजार भारी मात्रा में मिले हैं. आहड़ सभ्यता में धातुकर्म की शुरूआत हो चुकी थी. आहड़ का प्राचीन नाम ताँबावती था जिससे स्पष्ट होता है कि यहाँ ताँबा का प्रचुर मात्रा में प्रयोग होता था. आहड
बस्तियों का प्रादुर्भाव 2100 ई. पू. - 15OO ई पू. के बीच हुआ. गिलुंद आहड़ सभ्यता की बस्तियों के केन्द्र में अवस्थित था और 1500 ई. पू. में अस्तित्व में था. गिलुंद से पत्थर के ब्लेड बनाने का कारखाना प्राप्त हुआ है. आहड़ सभ्यता में लोग पत्थर के बने घरों में रहते थे.
जोखे संस्कृति
गोदावरी की सहायक नदी प्रवर नदी के पश्चिमी किनारे पर जोखे नामक स्थान पर महाराष्ट्र में एक पृथक् ताम्र-पाषाण संस्कृति का विकास हुआ इस संस्कृति से सम्बन्धित बस्तियाँ थीं जोखे, नेवासा,दायमाबाद, अहमदनगर जिले में, चंदोली. सोनगाँव और इनामगाँव पूना जिले में जोखे संस्कृति की बस्तियों में मालवा संस्कृति और दक्षिण भारत की नव (नवपसन) संस्कृति के लक्षण विद्यमान थे. जोखे संस्कृति 1400 ई.
पू से 700 ई. पू. तक अस्तित्व में रही इस संस्कृति से सम्बन्धित बस्तियाँ महाराष्ट्र के अतिरिक्त विदर्भ और कॉकण क्षेत्र में फैली हुई थीं. यद्यपि इस संस्कृति से सम्बन्धित सभी बस्तियाँ प्रकृति में गाँव जैसी थीं, लेकिन दायमाबाद और इनामगँव की बस्तियाँ शहरी स्तर तक पहुँच गई थी. जोखे संस्कृति की 200 से अधिक बस्तियाँ मिल चुकी हैं जिनमें दायमाबाद सबसे बड़ी है. दायमाबाद की बस्ती 20 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है. यहाँ सम्भवतः 4000 लोग निवास करते थे. यह नगर पत्थर और मिट्टी की दीवार से घिरा हुआ था. यहाँ से
भारी मात्रा में काँसे की सामग्री मिली है, जो दायमाबाद का सम्बन्ध हड़प्पा सभ्यता से दर्शाती है. इनामगाँव के मिट्टी के बने घरों से ओवन और वृत्ताकार गढ्ढे (Circular pit houses) प्राप्त हुए है. यहाँ से 1300 ई. पू.
से 1000 ई. पू. के दौरान का पाँच कमरों का एक घर मिला है, जिसमें चार आयताकार और एक वृत्ताकार कमरे हैं. यह घर बस्ती और एक वृत्ताकार कमरे हैं यह घर बस्ती के मध्य में अवस्थित था जिससे प्रतीत होता है कि यह बस्ती के प्रमुख का घर रहा होगा. घर के समीप ही एक अन्नागार भी मिला है. इनामगाँव भी किलेबद था.
जोखे संस्कृति की बस्तियों का आकार बीस हेक्टेयर से पाँच हेक्टेयर के बीच था. यहाँ द्वि-स्तरीय निवास (Two tier habi- tation) व्यवस्था थी. बडी बस्तियों का छोटी बस्तियों पर प्रभुत्व था. प्रभावशाली लोग आयताकार घरों में रहते थे, जबकि दूसरे लोग गोल कच्ची झोपड़ियों में निवासकरते थे.
गणेश्वर संस्कृति
राजस्थान के सीकर-झुंझनू के ताँबा क्षेत्र में गणेश्वर नामक स्थान पर एक संस्कृति अस्तित्व में आई. गणेश्वर से जो ताँबे की वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं उनमें बाणाग्र शूलाग्र, मछली मारे के काँटे, चूड़ियाँ आदि प्रमुख हैं. गणेश्वर संस्कृति को पूर्व हड़प्पा संस्कृति का माना जाता है. गणेश्वर सभ्यता के लोगों का जीवन कृषि और शिकार पर निर्भर था.
कायथ संस्कृति
कायथ संस्कृति 2000 ई. पू. से 1800 ई पू. में अस्तित्व में रही. हालांकि यह संस्कृति हड़प्पा संस्कृति के बाद की है. लेकिन इसमें पूर्व हड़प्पा संस्कृति के कुछ तत्व विद्यमान थे. इस संस्कृति को हड़प्पा संस्कृति से नहीं जोड़ा जा सकता.